शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

फिर याद आए राम

राम की महिमा भारी है। कहते हैं अपने भक्तों को प्रभु राम कभी निराश नहीं करते। दिल से याद करो, तो मुरादें जरूर पूरी करते हैं। लेकिन बीजेपी निराश हैं और प्रभु राम से अंदर ही अंदर नाराज भी। रिक्शे, ठेलेवाले, सभी की मुरादें पूरी हो जाती है लेकिन प्रभु राम है कि मान ही रहे। महासमर करीब है, सिंहासन की लड़ाई में साथ देने वाले पुराने साथी एक-एक कर छोड़ गए हैं। छोड़ क्या गए, दुश्मनों की पाली में खड़े हो गए है। बंगाल में दीदी कांग्रेस के साथ हो ली हैं और आँध्र के चंद्रबाबू ने तीसरे मोर्चा को गले लगा लिया है। दुश्मन की घेराबंदी मजबूत होती जा रही है। महाराष्ट्र में दादा ठाकरे मराठा पीएम का राग अलाप रहे हैं, तो उनके गण आडवाणीजी को भला क्यों चाहेंगे। बचा-खुचा जेडीयू है, तो बीच-बीच में डफली पर अपना ही राग अलाप देता है। बड़ी मुश्किल से वरुण ने राम की अलख जगाई थी, लेकिन नीतीश ने विरोध कर किए- कराए पर पानी फेर दिया। उधर दुश्मनों के खेमे में खड़ी माया बहन ने ऐन मौके पर ही तगड़ा झटका दे दिया है। राम भक्त वरुण को गुंडा बता, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा कर कारागृह में डाल दिया । यानि वरुण के लिए कम से कम एक साल के अज्ञातवास का इंतजाम कर दिया है। हाथ-पैर मारने पर भले ही एक साल अंदर न रहे, लेकिन महीने दो महीने का तो इंतजाम हो ही गया है। इसके बाद बाहर आकर भी क्या फायदा। तब तक महासमर तो खत्म हो चुका होगा । गद्दी नहीं मिली तो ऐसे भक्त और ऐसी भक्ति किस काम की। वैसे भी चारों दिशाओं से जो समाचार आ रहे हैं, वो शुभ नहीं हैं । लाख हाथ-पैर मारने के बाद भी सिंहासन दूर होता जा रहा है, सपना चूर होता जा रहा है। जनाधार लगातार घट रहा है। तीन महीने पहले चुपचाप सर्वे कराया था। तब २२२ गणों के साथ आने की उम्मीद थी, लेकिन हाल के सर्वे में ये आंकड़ा घटकर २१० रह गया है। सिंहासन और दूर खिसक गया है। नैया कैसे पार लगेगी, गण-दूत सभी को एक ही चिंता है। कम से कम २७२ गण साथ होंगे, तब ही सिर पर ताज चढ़ेगा। आडवाणी जी दिनरात एक किए हुए हैं। लेकिन उनकी मेहनत रंग लाती नहीं दिख रही । निराशा बढ़ रही है, अंधेरा पसरता जा रहा है । कार्यकर्ता की कौन कहे, बड़े सिपहसलार भी महासमर से पहले ही पस्त नजर रहे हैं। सुषमा जी ने तो पहले ही हार मान ली है। भोपाल में खुल कर उन्होंने कह ही दिया, बहुमत मिले, तब तो सरकार बनाएंगे। राजनाथ जी हैरान हैं। दिग्गज ही पीछे हट जाएंगे, तो कार्यकर्ताओं का क्या हाल होगा। कैसे पूरा होगा २७२ का आंकड़ा। चिंतन-मनन शुरू हुआ। नीतिकारों ने कहा, रणनीति बदलनी पड़ेगी । धूल झाड़ कर नीति की पुरानी पोथियां निकाली गई। पोथियों में हर तरफ थे राम। फिर याद आ गए राम। हम अयोध्या में राम मंदिर बनाएंगे, हो गया है ऐलान। जयश्री राम। अब सब जानते हैं कि मंदिर बनाना आसान होता, तो अटल जी ने ही बनवा दिया होता। लेकिन क्या करें, जनता जनार्दन है और झांसे में ही सही, जनता को जनार्दन से तो जोड़ना ही पड़ेगा। अब श्रीराम बीच में आ गए ,हैं तो शायद जनता का दिल पसीज जाए और महासमर का रुख बदल जाए। जय सिंहासन, जय श्रीराम!

1 टिप्पणी:

  1. ब्रजजी आपने सही कहा। भाजपा को अब राम का हीं सहारा है। कमाल तो ये है कि भाजपा को राम तब याद नहीं आये जब वो एनडीए का सहारा लेकर सत्ता सुख भोग रही थी। आड़वाणी डिप्टी पीएम के पद पर शोभायमान थे। अब जब कोई सहारा नहीं दिख रहा है। सभी सहयोगी पार्टियां भाजपा से किनारा कर गई है। तो ऐसे में राम ही हैं जो सत्ता तक पहुंचा सकते हैं। लेकिन, अब राम भी भाजपा को निराश ही करेंगे। क्योंकि तेरे वादे पे जिये हम तो ये झूठ जाने जाना कि खुशी से मर न जाते अगर ऐतवार होता।

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