बुधवार, 15 अप्रैल 2009

सम्मान का अपमान तो मत कीजिए

क्रिकेट अब देश से बड़ा हो गया है और क्रिकेट के खिलाड़ी तो शायद इससे भी बड़े हो गए हैं। आप माने या न माने, इससे फर्क कोई नहीं पड़ता। देश के दो बड़े क्रिकेटर इसी मुगालते में जी रहे हैं। जी हां, महेंद्र सिंह धोनी और हरभजन सिंह, देश का सम्मानित अवॉर्ड पद्मश्री लेने के लिए सम्मान समारोह में नहीं गए। वजह, मीडिया की खबरों की माने, तो किसी ऐड फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थे।
सम्मान समारोह में हाजिर नहीं हो पाना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन जिस वजह से ये खिलाड़ी वहां मौजूद नहीं हुए, ये दिल तोड़ने वाली बात जरूर है। क्या इनके लिए पैसा, देश से बड़ा हो गया है?
धोनी और हरभजन बहुत अच्छे खिलाड़ी हैं और क्रिकेट में इनका योगदान देश के लिए गर्व की बात है। लेकिन मान-सम्मान बढ़ाने वाले दूसरे खिलाड़ी भी देश में हैं। जरा याद कीजिए अभिनव बिंद्रा का ओलंपिक में गोल्ड मेडल। हमें तो पहलवान सुशील कुमार और पहलवान बिजेंद्र कुमार भी याद हैं। इन लोगों ने भी ओलंपिक में मेडल जीत पूरी दुनिया में भारत का सर ऊंचा किया है। देश को पहला ओलंपिक गोल्ड मिला या 52 साल बाद ओलंपिक कुश्ती में भारत को मेडल मिला था, तब निश्चिततौर पर देश के 125 करोड़ लोगों को, किसी मैच जीतने से ज्यादा खुशी मिली थी। बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल या जूनियर विम्बलडन विजेता यूकी भांबरी भी हमारे सरताज हैं। हर भारतीय का इन्होंने भी सिर ऊंचा किया है। और भी खिलाड़ियों की लंबी फेहरिस्त है, जिन पर हमें नाज है। लेकिन पद्मश्री के लिए चुना गया धोनी और हरभजन को, तो इन्हें भी इस सम्मान का अनादर नहीं करना चाहिए।
बहरहाल धोनी चुप हैं और हरभजन कह रहे हैं वो परिवार के साथ थे, इस लिए सम्मान समारोह में शामिल नहीं हुए। हरभजन जी, परिवार के साथ रहिए, जरूर रहिए, लेकिन पूरा देश भी आपका परिवार है, वो भी आपको सर-आंखों पर बैठाता है, उसका अपमान तो मत कीजिए।

सोमवार, 13 अप्रैल 2009

झांसे का राजा

महासमर की भेरी गूंज उठी है। सत्ता का फाइनल करीब है और कुर्सी के लिए नेता लाव-लश्कर के साथ चुनावी जंग में कूद पड़े हैं। जीत का दावा हर कोई कर रहा है। कोई तीसरा मोर्चा बना रहा है तो शरद पवार जैसे नेता यूपीए से मुंह मोड़ने का दिखावा कर, तीसरे मोर्चे के सहारे पीएम की कुर्सी की राह तलाश रहे हैं। पासवान, लालू, मुलायम चौथा मोर्चा बना कर किंग न सही, किंग मेकर बनने की जुगाड़ बैठा रहे हैं। सत्ता से किनारा कर दिए गए लेफ्ट को मायावती का आसरा है।
खींचतान इतनी है कि यूपीए में सोनिया, शरद पवार को नहीं रोक पा रहीं और एनडीए में आडवाणी को नीतीश का साथ छूटता दिख रहा है। गठबंधन में सबसे करीबी रहे लालू यादव की बिहार में जब सोनिया गांधी आलोचना करती हैं और नीतीश बीजेपी के साथ तालमेल पर अफसोस जताते हैं तो साफ दिख रहा है कि अभी नहीं तो, चुनाव के बाद कुछ अलग तरह की खिचड़ी जरूर पकेगी।
बहरहाल नेताओं की अब तक की बहसबाजी से ये तो साफ हो गया है कि सबको
अपनी कुर्सी की ही चिंता है। जनता की तो कतई नहीं। इस लिए इस चुनाव में किसी पार्टी के पास जनता के लिए कोई मुद्दा भी नहीं है।
अभी पार्टियों के बीच एक दूसरे को पछाड़ने के लिए जो बहस जारी है उसमें विकास की बात नहीं हो रही, प्रधानमंत्री के उम्र पर वार-पलटवार हो रहे हैं। नरेंद्र मोदी कांग्रेस को पहले बुढ़िया, फिर गुड़िया कहते हैं, तो प्रियंका गांधी नरेंद्र मोदी, आडवाणी को जवान बता व्यग्य की मुस्कान छोड़ रही है। आडवाणी, मनमोहन को कमजोर बता रहे हैं, तो कभी नहीं बोलने वाले मनमोहन तिलमिला कर आडवाणी की बखिया उधेड़ रहे हैं। राहुल गांधी पीएम होंगे या नहीं, इसकी चिंता कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को दिख रही है।
तो जनता -जनारदनों इस बार की लड़ाई में आप कहीं नहीं हो। इस बार की लड़ाई, राजाओं की अपनी है। जनता भी इसे समझ चुकी है। राजनीतिक ड्रामेबाजी जारी है और जनता, रिंग मास्टर को रोल में खूब चटकारे लेकर खामोशी से तमाशा देख रही है। वो खुश है, चलो इस बार इन झांसे के राजाओं को अपनी ही पड़ी है, वर्ना सब लंबे चौड़े वादों का पाशा फेंक उसकी सरदर्दी बढ़ा जाते। लोगों के लिए तय करना मुश्किल हो जाता कि किसे वोट दें और किसे न दें।
बहरहाल जनता की खामोशी ने ही सभी पार्टियों की धड़कन बढ़ा दी है। सबको डर सता रहा है कि कहीं वोट की उलटी चोट उन पर ही न पड़ जाए। इसीलिए लोगों को झांसे में रखने के लिए तमाशा जारी रखना उनकी मजबूरी भी है
तो देखते रहिए मनोरंजन का उम्दा तमाशा वो भी बिल्कुल मुफ्त।

शनिवार, 11 अप्रैल 2009

आ गईं हैं कैट !

लड़कियों को अदना समझने वाले लड़कों, होशियार। अब घर के साथ, दफ्तर के मैनेजमेंट में भी जल्द ही लड़कियों का दबदबा होगा और अपनी बुद्धि पर इतराने, इठलाने वाले लड़के बॉस-बॉस कह कर उनके पीछे घुमते नजर आएंगे। जी हैं, कैट की परीक्षा में पिछले साल के मुकाबले इस बार तीनगुना ज्यादा लड़कियां सफल हुई हैं।
आईआईएम अहमदाबाद में पिछले साल इनका प्रतिनिधित्व मात्र 6 फीसदी था, वहीं इस साल ये बढ़कर 19 फीसदी हो गया है। यानी हर पांच लड़कों पर एक लड़की ने अपने लिए सीट रिजर्व कर ली है।
ये अचानक नहीं हुआ है। आईआईएम में लड़कियों की तादाद बढ़ने के पीछे उनकी वर्षों पुरानी मेहनत इस बार रंग लाई है । दरअसल इस बार कैट की परीक्षा में दसवीं और बारहवीं के नतीजे को भी पहली बार तरजीह दी गई है। अब ये बात किसी से छिपी नहीं कि इन दोनों परीक्षाओं में लड़कियां हमेशा लड़कों से बाजी मारती रही हैं। और इनका यही मेहनत इस बार कैट की परीक्षा में काम कर गया।
ये भी सच है कि लड़िकयां शुरुआती पढ़ाई में हमेशा लड़कों से आगे रहती हैं। लेकिन जब बात उच्च, तकनीकी या किसी खास शिक्षा की आती है, जिसमें ट्रेनिंग या कोचिंग की जरूरत होती है, ज्यादतर परिवारों में लड़कियों को दबा दिया जाता हैं और लड़कों को आगे बढ़ा दिया जाता है। बड़े बूढ़े ये कह कर लड़कियों को दबा देते हैं कि इन्हें ज्यादा पढ़ा कर क्या होगा, अंत में तो इन्हें घर-गृहस्थी ही संभालनी है।
कहावत है कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती, और लड़कियों की प्रतिभा को आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्था ने भी पहचान लिया है।

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

जया प्रदा मांगे इंसाफ

समाजवादी पार्टी की नेता जया प्रदा इनदिनों अपनी ही पार्टी के एक बडे नेता से खासी परेशान है और इंसाफ के लिए मुलायम सिंह यादव से गुहार लगाई है। जया प्रदा का आरोप है पार्टी के कद्दावर नेता आजम खां उन्हें लगातार परेशान कर रहे हैं और मुलायम सिंह ही उन्हें आजम खां से बचा सकते हैं।
जया प्रदा का आरोप संगीन है। क्योकिं पार्टी के महासचिव और मुलायम सिंह के सारथी अमर सिंह इसी बात पर पार्टी छोड़ने तक की धमकी दे चुके हैं। शायद ये पहला मौका है जब अमर सिंह ने मुलायम के खिलाफ जुबान खोला है। अमर सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि मुलायम सिंह ही आजम खां को सर पर चढ़ाए हुए हैं और पार्टी में आजम खां का कद मुलायम सिंह से भी ऊंचा है।
जया प्रदा को आजम खां से कैसी परेशानी है, इसका तो खुलासा नहीं हुआ है लेकिन अमर सिंह की धमकी कहती है कि मामला काफी गंभीर है। अब बेचारे मुलायम सिंह, चुनाव सर पर है पार्टी के लिए वोट जुटाएं या घर का झगड़ा निपटाएं।

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

ये इंसाफ की शुरुआत है !

आखिरकार कांग्रेस ने जगदीश टाइटलर का टिकट काट दिया है। टाइटलर के अलावा सज्जन कुमार को भी पार्टी ने चुनाव मैदान से हटा दिया है। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने ऐलान किया कि दोनों इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। कांग्रेस का ये फैसला 25 साल से इंसाफ लड़ाई लड़ रहे सिख समुदाय की पहली जीत है। ये पहला मौका है जब 84 के दंगों के आरोपियों को अदालत से बाहर, जनता की अदालत में कोई सजा मिली है। कांग्रेस आलाकमान के इस फैसले से 84 के सिख विरोधी दंगों में मारे गए तीन हजार लोगों के पीड़ित परिवार को थोड़ी राहत जरूर मिलेगी।
जगदीश टाइटलर ये मानने के लिए तैयार नहीं कि सिख दंगों में उनका हाथ था। आज मीडिया को बुला कर फिर उन्होंने खुद को पाक-साफ बताया और अपने खिलाफ चल रहे सिखों के आंदोलन के लिए मीडिया को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया। टाइटलर का कहना था कि 12 कमीशन बने, जिसमें 13,500 हलफनामे दायर हुए और किसी में उनका नाम नहीं है। उनके खिलाफ सिर्फ दो हलफनामे हैं ,जिसकी जांच हो रही है। उनकी दलील है कि एनडीए सरकार में भी उन्हें इस मामले में क्लीन चिट मिल चुकी है।
लेकिन सिख समुदाय टाइटलर और सज्जन कुमार को माफ करने को तैयार नहीं। इनका आरोप है कि सरकार सीबीआई पर दबाव डाल रही है और इसी लिए इन दो बड़े नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही।
उधर दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट में आज सीबीआई ने अपना जो रुख दिखाया है उससे भी तय है कि दंगा पीड़ितों को अभी लंबी लड़ाई लड़नी है। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट दे दी है और इस रिपोर्ट को कोर्ट माने या न माने, अदालत में इसी पर आज सुनवाई थी। सुनवाई के दौरान झूठी दलील देकर सीबीआई ने कोर्ट को ही गुमराह करने की कोशिश की और अदालत के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठा दिए। अदालत ने सीबीआई को फटकार लगाई, जांच के लिए सीबीआई से दो टेप मांगे अब केस की अगली सुनवाई 28 अप्रैल को होगी।
बहरहाल चुनाव करीब है इस लिए कांग्रेस ने इन दोनों का टिकट काट
सिख समुदाय में बढ़ते आक्रोश को कम करने की कोशिश की है और इसे अच्छी शुरुआत भी माना जा सकता है। लेकिन साथ ही न्याय व्यवस्था में सुधार जरूरत भी है। क्योंकि जस्टिस डीले, जस्टिस डिनाय। इंसाफ के लिए लोगों को पीढ़ी दर पीढ़ी इंतजार करना पड़े , तो ऐसे न्याय का क्या फायदा।

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

दिशाहीन मीडिया

गृह मंत्री पी चिदंबरम पर एक पत्रकार ने जूता फेंक पत्रकारिता ही नहीं, पूरे देश को शर्मशार कर दिया है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ से ऐसी ओछी हरकत की कतई उम्मीद नहीं की जा सकती।
वाकया यू हुआ कि दिल्ली में चिदंबरम की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंह ने जगदीश टाइटलर को सीबीआई से क्लीन चिट मिलने को लेकर सवाल पूछे। चिदंबरम ने जवाब में कहा कि सीबीआई गृह मंत्रालय के अधीन नहीं आती और सीबीआई ने अभी कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी है, इस लिए कोर्ट के फैसले का सबको इंतजार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोई जरूरी नहीं की कोर्ट सीबीआई की रिपोर्ट को मान ही ले। अदालत अगर जरूरी समझेगी, तो मामले की फिर से जांच के भी आदेश दे सकती है। लेकिन पत्रकार महोदय वहां चिदंबरम का जवाब सुनने नहीं, खुद को हीरो साबित करने पहुंचे थे। जनरैल ने जवाब अनसुना करते हुए चिदंबरम की तरफ जूता उछाल दिया। गुमनामी में जीने वाला अदना पत्रकार एक झटके में मीडिया की सुर्खिया बन गया।
चिंदंबरम जवाब देते वक्त भी शांत थे और इस ओछी हरकत के बाद भी शांत रहे। चिदंबरम ने जरनैल को माफ कर दिया है और कांग्रेस ने भी कोई मामला दर्ज नहीं किया। अब जरनैल को भी अपनी करनी पर पछतावा है। अब वो अपनी गलती मान रहे हैं और चिदंबरम से माफी भी मांगना चाहते हैं। मामला रफा-दफा हो गया है। लेकिन मीडिया तो पढ़े लिखे लोगों की जमात है और ये जमात आखिर किस दिशा में जा रही है। ये सोचने वाली बात जरूर है। क्योंकि आज की हरकत पत्रकारिता के पतन का आखिरी पायदान ही है। भ्रष्ट पत्रकार, बेईमान पत्रकारों की कतार से बहुत आगे। जरनैल की इस ओछी हरकत पर पूरी मीडिया को चिंतन करने की जरूरत है। बुद्धिजीवियों याद रखिए भारत बगदाद नहीं, क्योंकि हमारी तहजीब ऐसी हरकतों की इजाजत नहीं देती। बुश पर जूता फेंकने वाला भले् ही हीरो बन गया हो, यहां ऐसी हरकत करने वाला जीरो ही रहेगा।

सोमवार, 6 अप्रैल 2009

मीडिया गुरु पाक

पाकिस्तान में आतंकी पैदा होते हैं, वहां कानून की नहीं चलती। लोगों में शिक्षा की कमी है, पाकिस्तान सर से पांव तक कर्ज में डूबा है। सरकार अस्थिर है और अधिकारी भ्रष्ट है। कबिलाई इलाके में आतंकी खुलेआम हथियार लेकर घूमते हैं और तालिबान, अलकायदा के लोग धमाका कर कही भी, कभी भी सौ पचास लोगों को आसानी से मौत की नींद सुला जाते हैं। पाकिस्तान के आतंकियों से दुनिया परेशान है और यही आज के पाकिस्तान की तस्वीर है।
लेकिन हम आप भले ही गौर न करें, वहां एक ताकत तबाही के राक्षसों से लगातार लड़ाई जारी रखे हुए हैं। जी हां बात पाकिस्तानी मीडिया की कर रहा हूं। पाकिस्तान में प्राइवेट इलेक्ट्रोनिक मीडिया बहुत ही शुरुआती दौर में है। लेकिन इसके साहस के आगे हिन्दुस्तानी इलेक्ट्रिनिक मीडिया कहीं नहीं टिकती।
आप पूछेंगे कि ऐसा क्या हो रहा है वहां, जो हिन्दुस्तान की मीडिया नहीं कर रही। तो सुनिए-बद से बदतर हालात में भी पाकिस्तानी मीडिया इंसाफ की लड़ाई में इमानदारी और पूरी जिम्मेदारी के साथ खड़ी है और आज भी पत्रकारिता वहां मिशन ही दिख रहा है, हिन्दुस्तान की तरह प्रोफेशन नहीं। इमानदारी इतनी कि वहां की पत्रकारिता हिंदुस्तान-पाकिस्तान में फर्क नहीं कर रही।
याद है कसाब मामला। वो पाकिस्तान मीडिया का साहसी रोल ही रहा कि पाकिस्तान को कसाब का पाकिस्तानी नागरिक होना कबूल करना पड़ा। जियो टीवी ने स्टिंग ऑपरेशन कर दुनिया को बता दिया कि कसाब फरीदकोट का ही रहने वाला है। पाक मीडिया के खुलासे से भारत का पक्ष मजबूत हुआ और पाकिस्तान मजबूर।
विदेश ही नहीं, देसी मोर्चे पर भी वहां की मीडिया ने लाजवाब कर दिया है। कुछ नमूना देखिए, आप भी कायल हो जाएंगे।
अभी थोड़े दिन पहले पाकिस्तान में जरदारी के अड़ियल रवैये से राजनीतिक संकट पैदा हो गया था, और लोग जब सड़कों पर उतरे तो, वहां की मीडिया सरकार के साथ नहीं, आवाम के साथ दिखी। सरकार पर पर इतना दबाव बना कि उसे् नवाज शरीफ के मामले को रफा-दफा करना पड़ा, चीफ जस्टिस इफ्तेखार चौधरी की बहाली हुई। चौथे से स्तंभ ने जम्हूरियत के दो स्तंभों विधायिका और न्यायपालिका को नई जिंदगी दी। समाज के सजग प्रहरी के तौर पर मीडिया की यही ड्यूटी है और वहीं के पत्रकार इसे बखूबी निभा भी रहे हैं।
हिम्मत की दूसरी बानगी देखिए। दुनिया को भले ही तालिबान और अलकायदा के आतंकियों से डर लगता हो, पाक मीडिया को इनसे कोई डर नहीं। तालिबानियों ने कुछ दिन पहले जिओ टीवी के पत्रकार की हत्या कर दी। सोचा होगा, पत्रकार डर जाएंगे, कलम बंद हो जाएगी। लेकिन पाकिस्तान में तलवार कलम को नहीं झुका पाई है।
स्वात घाटी में तालिबानियों ने एक नाबालिग को इसलिए सरेआम कोड़े से पीटा, क्योंकि उसने आतंकी से शादी करने से इनकार कर दिया था। तालिबानियों के गढ़ और मौत के मुंह में घुस कर मीडिया ने एक बार फिर अपना फर्ज निभाया है। कोड़े से पिटती लड़की का फुटेज केवल पाकिस्तान में लोगों ने देखा, बल्कि दुनिया ने भी इसे देखा। सरकार पर इतना तबाव बढ़ा कि अब उसे इस मामले की जांच की आदेश देने पड़े हैं।
जहां हर पल बंदूकें गरजती हों, जहां आतंकी इंसान को भेड़ बकरियों की तरह मार रहे हों, जहां सरकार असहाय हो, वहां मीडिया का ऐसा साहस-जय हो

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

फिर याद आए राम

राम की महिमा भारी है। कहते हैं अपने भक्तों को प्रभु राम कभी निराश नहीं करते। दिल से याद करो, तो मुरादें जरूर पूरी करते हैं। लेकिन बीजेपी निराश हैं और प्रभु राम से अंदर ही अंदर नाराज भी। रिक्शे, ठेलेवाले, सभी की मुरादें पूरी हो जाती है लेकिन प्रभु राम है कि मान ही रहे। महासमर करीब है, सिंहासन की लड़ाई में साथ देने वाले पुराने साथी एक-एक कर छोड़ गए हैं। छोड़ क्या गए, दुश्मनों की पाली में खड़े हो गए है। बंगाल में दीदी कांग्रेस के साथ हो ली हैं और आँध्र के चंद्रबाबू ने तीसरे मोर्चा को गले लगा लिया है। दुश्मन की घेराबंदी मजबूत होती जा रही है। महाराष्ट्र में दादा ठाकरे मराठा पीएम का राग अलाप रहे हैं, तो उनके गण आडवाणीजी को भला क्यों चाहेंगे। बचा-खुचा जेडीयू है, तो बीच-बीच में डफली पर अपना ही राग अलाप देता है। बड़ी मुश्किल से वरुण ने राम की अलख जगाई थी, लेकिन नीतीश ने विरोध कर किए- कराए पर पानी फेर दिया। उधर दुश्मनों के खेमे में खड़ी माया बहन ने ऐन मौके पर ही तगड़ा झटका दे दिया है। राम भक्त वरुण को गुंडा बता, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा कर कारागृह में डाल दिया । यानि वरुण के लिए कम से कम एक साल के अज्ञातवास का इंतजाम कर दिया है। हाथ-पैर मारने पर भले ही एक साल अंदर न रहे, लेकिन महीने दो महीने का तो इंतजाम हो ही गया है। इसके बाद बाहर आकर भी क्या फायदा। तब तक महासमर तो खत्म हो चुका होगा । गद्दी नहीं मिली तो ऐसे भक्त और ऐसी भक्ति किस काम की। वैसे भी चारों दिशाओं से जो समाचार आ रहे हैं, वो शुभ नहीं हैं । लाख हाथ-पैर मारने के बाद भी सिंहासन दूर होता जा रहा है, सपना चूर होता जा रहा है। जनाधार लगातार घट रहा है। तीन महीने पहले चुपचाप सर्वे कराया था। तब २२२ गणों के साथ आने की उम्मीद थी, लेकिन हाल के सर्वे में ये आंकड़ा घटकर २१० रह गया है। सिंहासन और दूर खिसक गया है। नैया कैसे पार लगेगी, गण-दूत सभी को एक ही चिंता है। कम से कम २७२ गण साथ होंगे, तब ही सिर पर ताज चढ़ेगा। आडवाणी जी दिनरात एक किए हुए हैं। लेकिन उनकी मेहनत रंग लाती नहीं दिख रही । निराशा बढ़ रही है, अंधेरा पसरता जा रहा है । कार्यकर्ता की कौन कहे, बड़े सिपहसलार भी महासमर से पहले ही पस्त नजर रहे हैं। सुषमा जी ने तो पहले ही हार मान ली है। भोपाल में खुल कर उन्होंने कह ही दिया, बहुमत मिले, तब तो सरकार बनाएंगे। राजनाथ जी हैरान हैं। दिग्गज ही पीछे हट जाएंगे, तो कार्यकर्ताओं का क्या हाल होगा। कैसे पूरा होगा २७२ का आंकड़ा। चिंतन-मनन शुरू हुआ। नीतिकारों ने कहा, रणनीति बदलनी पड़ेगी । धूल झाड़ कर नीति की पुरानी पोथियां निकाली गई। पोथियों में हर तरफ थे राम। फिर याद आ गए राम। हम अयोध्या में राम मंदिर बनाएंगे, हो गया है ऐलान। जयश्री राम। अब सब जानते हैं कि मंदिर बनाना आसान होता, तो अटल जी ने ही बनवा दिया होता। लेकिन क्या करें, जनता जनार्दन है और झांसे में ही सही, जनता को जनार्दन से तो जोड़ना ही पड़ेगा। अब श्रीराम बीच में आ गए ,हैं तो शायद जनता का दिल पसीज जाए और महासमर का रुख बदल जाए। जय सिंहासन, जय श्रीराम!