शनिवार, 12 दिसंबर 2009

बोया पेड़ बबूल का !

एक कहावत है बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय, पाकिस्तान इन दिनों अपने ही बोये बबूल के कांटों से लहूलुहान है। डाल का हर कांटा आज उनके शरीर को ही छेद रहा है और उसकी कराह, खुद उसका ही सीना फाड़ रही है। भारत के खिलाफ खड़ी की गई आतंकियों की फौज आज खुद उसके लिए नासूर बन चुकी है।
आतंकियों के हौसले इतने बुलंद है कि पाकिस्तान की तमाम सुरक्षा व्यवस्था बौनी साबित हो रही है और सेना के ठिकानों से लेकर पवित्र मस्जिद तक, कमोवेश रोज, कहीं न कहीं, बेखौफ आतंकियों के हमले जारी हैं। पहले बाजार, सरकारी इमारत, नेता और सरकारी लोग निशाने पर थे, अब मस्जिद भी महफूज नहीं। खुदा के घरों में ही, खुदा की इबादत करने वाले बेकसूर लोगों जान लेने में आतंकियों को कोई हिचक नहीं।
बेरहमी इतनी बढ़ चुकी है कि उन्हें बच्चों पर भी तरस नहीं। 4 दिसंबर को रावलपिंडी मस्जिद ब्लास्ट में करीब चालीस लोगों की जान गई, जिनमें 17 मासूम बच्चे हैं। वो मासूम बच्चे, जिनके लिए मजहब अभी खुदा को दिल से लगाने जरिया था, नफरत की दीवार खड़ी करने का रास्ता नहीं बना था।
मस्जिद पर आतंकियों के हमले ने पाकिस्तान को हिला दिया है। वहां हर किसी अब लगने लगा है कि आतंकी इंसानियत के दुश्मन हैं और धर्म या ईश्वर से उनका कोई लेना-देना नहीं। धार्मिक जगहों पर तो भारत में भी आतंकी हमले होते रहे हैं। ये बात दीगर है कि पाकिस्तान ने कभी ईमानदारी से ऐसी वारदातों की खिलाफत नहीं की। बल्कि आतंकवादियों को वहां के सियसतदां से शह मिलता रहा और यहां के धार्मिकस्थल बेगुनाहों के खून रंगते रहे। चरार-ए-शरीफ, हजरतबल से लेकर हैदराबाद की मस्जिद, अजमेर शरीफ और वाराणसी से् लेकर अक्षरधाम मंदिर तक आतंकियों सॉफ्ट निशाना रहे हैं और आतंकियों ने तो बिना भेदभाव दोनों समुदायों को निशाना बनाया है।
बहरहाल रावलपिंडी मस्जिद ब्लास्ट की पाकिस्तान में हर तबके ने आलोचना की है। धर्म गुरु कह रहे हैं कि ऐसे हमले इस्लाम के खिलाफ हैं और लोगों की जान लेने वाले खुदकुश हमलावर को जन्नत नहीं, दोजख में जाना होगा। राजनीतिक हलकों में भी आतंकवाद पर लगाम लगाने की पुरजोर मांग उठने लगी है। रहमान मलिक कह रहे हैं कि ऐसे लोग मुल्क के गद्दार हैं, इन पर रोक लगाने के लिए सभी पार्टियों की मदद लेंगे। मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट ने आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए कड़े कानून बनाने और अलग इदारा कायम करने की पुरजोर वकालत की है।

कानून और भाषण तो अपनी जगह ठीक है, लेकिन एक चीज शायद सबसे ज्यादा जरूरी है। पाकिस्तान में शिक्षा की कमी और गरीबी सबसे बड़ी समस्या है और यही आतंकवाद की जड़ भी है। गरीबी की वजह से एक बड़ा तबका आधुनिक शिक्षा से महरूम है और कट्टरपंथियों के चंगुल में है। मदरसे (जहां धर्म की शिक्षा दी जाती है) आज आतंकियों को पैदा करने वाली फैक्ट्री बन चुके हैं और यहां से निकलने वाले भस्मासुर अब पाकिस्तान को भी भस्म करने के लिए आतुर है। इस लिए जरूरत जड़ पर चोट करने की ज्यादा है।

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